बाबा रामेश्वर दास मंदिर, नारनौल हरियाणा

 बाबा रामेश्वर दास मंदिर, नारनौल हरियाणा


पवन खायरा 9653538107 




बामणवास नौ नारनौल से लगभग 25 किमी. की दूरी पर हरियाणा – राजस्थान सीमा के पास स्थित है। इसकी प्रसिद्धि का प्रमुख कारण बाबा रामेश्वर दास का मंदिर है। यह मंदिर गाँव में बना हुआ है – 



हालाँकि इसकी मुख्य दीवार राजस्थान के टिब्बा बसाई गाँव में आती है। यह मंदिर पूरे वर्ष भक्तों को आकर्षित करता है।



वास्तविक रूप से इस मंदिर का निर्माण बाबा रामेश्वर दास ने 1963 में किया था जिसका कई बार पुन:निर्माण किया गया। इसका प्रमुख विशेषता बड़ा सभा कक्ष (हॉल) है जो सुंदर दीवारों से सुसज्जित है 



और जिसका फर्श संगमरमर से बना हुआ है। इस हॉल में एक बार में हजारों भक्त बैठ सकते हैं। हॉल तथा अन्य कमरों में कई देवी, देवताओं की मूर्तियाँ हैं।



ग्राम ब्राह्मणवास नौ में भव्य मंदिरों के परिसर को बाबा रामेश्वर दास धाम कहा जाता है। यह धाम हरियाणा व राजस्थान राज्य की सीमा पर दोहान नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है जहां श्री श्री 1008 श्री बाबा रामेश्वर दास जी ने तपस्या की थी। बाबा रामेश्वर दास के अनुयायी पूरे देश में बसे हुए हैं। हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश व उड़ीसा आदि राज्यों से लोग चल कर इस परिसर में पूजा अर्चना तथा मनौतियों के लिए आते रहते हैं। बाबा जी के ब्रह्मलीन हो जाने के उपरान्त भी प्रतिदिन हजारों श्रद्धालू इस मंदिर के दर्शन को आते हैं। 



बाबा रामेश्वर दास जी महाराज का जन्म जिला महेन्द्रगढ़ के ग्राम सिरोही बहाली तहसील नारनौल के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में ही इनके माता पिता का देहान्त हो जाने के कारण इनका पालन-पोषण इनके ताऊ द्वारा किया गया था। 




विद्या अध्ययन के लिए वे ढ़ोसी पर्वत पर शिवकुण्ड स्थित श्री श्री 1008 श्री श्रीनन्द ब्रह्मचारी जी द्वारा संचालित संस्कृत पाठशाला में विद्याध्ययन हेतु आ गए थे। यह पाठशाला संस्कृत अध्ययन के लिए इस क्षेत्र का एक महान शिक्षा केन्द्र थी। विद्यार्थी जीवनकाल में ही बाबा रामेश्वर दास जी को वैराग्य हो जाने के कारण सन्त शिरोमणी श्री श्रीनन्द ब्रह्मचारी जी महाराज से दीक्षा लेकर इन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया और तदोपरान्त ये ग्राम कारोली तहसील नारनौल के मंदिर में पूजा अर्चना करने लग गए। कारोली से बाबा जी ग्राम बीगोपुर की सीमा में निर्जन क्षेत्र में तपस्या करने लगे। कुछ ही दिनों में वहां एक भव्य आश्रम का निर्माण करवाया, जहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग इनके दर्शनों को आने लगे। एक दिन बाबा जी अचानक आश्रम से अर्न्तध्यान हो गए और कई वर्षों तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। फिर अचानक एक दिन वर्तमान रामेश्वर धाम के निर्जन स्थान पर एक तिबारे में तपस्या करते हुए पाए गए। उसके बाद क्षेत्र के हजारों लोग प्रतिदिन उनके दर्शनों को आने लगे और श्रद्धालुओं ने इस धाम के भव्य परिसर का निर्माण करवाया। 



इस मंदिर परिसर का निर्माण वर्ष 1963 से शुरू हुआ। बाबा जी की तरफ से चढ़ावे में रुपया पैसा चढ़ाने की सख्त मनाही थी मगर फिर भी यहां प्रतिदिन भोग प्रसाद का सदाव्रत लगा रहता था। ब्रह्मलीन होने से पूर्व बाबा जी ने अपने जीवन काल में ही एक ट्रस्ट का निर्माण करवा दिया था। मंदिर की देखरेख इस समय यह ट्रस्ट करता है। 



रामनवमी को इस धाम पर एक भव्य मेला लगता है। इस मंदिर प्रांगण में भगवान शिव के वाहन नन्दी की प्रतिमा 25 फुट लम्बी, 15 फुट ऊंची तथा 20 फुट चौड़ी स्थापित है। इसी मंदिर प्रांगण में 10 फुट ऊंचा शिवलिंग भी स्थापित है। मंदिर द्वार पर लगभग 40 फुट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित है जो सम्भवतः उत्तरी भारत में अनुपम व बेजोड़ है।

 इस मंदिर परिसर के एक कक्ष में सम्पूर्ण गीता दीवारों पर अंकित करवाई हुई है तथा मंदिर परिसर में उत्तम किस्म की चित्रकारी भी की हुई है जिसमें हिन्दू देवी देवताओं के चित्रों के अतिरिक्त हिन्दू पौराणिक गाथाओं को भी चित्रित किया हुआ है। इस मंदिर प्रांगण में पदार्पण करते ही व्यक्ति एक असीम आनन्द एवं मानसिक शांति की अनुभूति करता है।

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